शर्मीलेपन से आत्मविश्वास तक: अपने जीवन को कैसे मोड़ें

क्या आपको भी किसी ने शर्मीला का उपाधि दिया है ? जैसे कि,” तुम इतने शरमाते क्यों हो ?”, ” तुम्हें शर्म क्यों महसूस हो रहा ?”, “देखो तो इसे, कैसे शर्मा रहा है…!”

हम सभी ने अपने जीवन में कभी ना कभी, किसी के द्वारा “शर्म” शब्द से जरुर नवाजे गये हैं। हालाँकि यंहा पर शर्म शब्द का उपयोग, हमारे अन्दर दबी हुयी हीन आत्मविश्वास, या दब्बूपन को बताने से है।

लेकिन ठीक, इसी शर्म शब्द का प्रयोग अन्य सन्दर्भों में भी होते हैं। जैसे कि “इस काम को करते वक़्त, तुम्हें जरा सा भी शर्मिंदगी एहसास नही हुआ…!” यंहा पर इसका उपयोग अपने कुकर्मों के आत्मग्लानि एहसास कराने से है।

परन्तु आज जिस शर्म के बारे में बात करेंगे, जिसका संबंध आत्मविश्वास में कमी से है। ताकि कोई भी इंसान अपने शर्म के पर्दा को हटाकर अपने पुरे आत्मविश्वास को कैसे जगा पायें।

1. परिचय

शर्मिंदगी हमें तब ज्यादा महसूस होता है, जब हमारे पास खुद को व्यक्त करने की अपार संभावना होते हुए भी, हिचकिचाहट के डर से खुद को लोगों के सामने व्यक्त कर पाने में असमर्थ होते हैं या फिर अपने ही उम्मीदों को टूटने का डर से हम आगे बढ़ना नही चाहते है।

हमें समाज के मानकों या फिर अपने ही मानकों पर खरे ना उतर पाने के डर से ही, स्वयं को पीछे खीच लेते है।

परन्तु यह कोई अधिक चिंता का विषय नही है, क्योंकि इस अनुभव से हर कोई अपने जीवन में एक बार जरुर गुजरता है। इसे हर व्यक्ति धीरे-धीरे अभ्यास के मदद से ही अपने शर्मिंदगी से उबरकर आत्मविश्वासी बना लेता है।

आत्मविश्वास हरेक व्यक्ति के सफलता के लिए जरुरी होता है, चाहे वह छोटा बच्चा ही क्यों ना हो। जो इंसान इन जंजीरों के बाधा को तोड़कर जीवन में आगे बढ़ता है, उसके उतना ही जल्दी जीवन में ऊंचाइयों को हासिल करने का संभावना अधिक होता है।

2. शर्म को समझना

सीधे तौर पर कहा जाए तो, शर्म इंसान को निर्बल एहसास करने वाली भावना है, जो हमारे आत्मविश्वास के विकास में बाधक होती है। यह हमें सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने के राह में रुकावट पैदा करता है।

शर्म के हमारे अन्दर हावी होने के पीछे कई कारण हो सकते है। जैसे कि व्यक्तिगत उम्मीदों पर हमेशा असफल होना, सामाजिक अपेक्षा के अनुकूल अपने आप को दर्शा नही पाना या फिर जीवन के पिछले कटु अनुभव इत्यादि भी हो सकते हैं।

3. स्वयं से प्रेम करना

स्वयं से प्रेम या आत्म-प्रेम..! दोनों का अर्थ एक ही होते हैं। जो लोग आत्म-प्रेम शब्द से पहली बार वाकिफ होंगे, वे निश्चय ही इस वाक्य का उपहास उड़ाएंगे। भला कोई अपने आप से कैसे प्यार कर सकता है ? लेकिन अगर मैं कहूँ कि हाँ, यह बिलकुल संभव है।

चलिए मैं इसका अर्थ समझाता हूँ। आत्म-प्रेम से सीधा अर्थ, अपने-आप को दूसरों से तुलना करना छोड़कर, जैसे है, वैसे ही खुद को स्वीकारने से है। खुद को स्वीकारना ही हमारे आत्मविश्वास को बनाने की कुंजी है। आइए हम आत्म-प्रेम को अधिक विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।

3a. स्वीकारने का आदत

सबसे पहली बात, अपने-आप में जो भी समाहित गुण है, उसे पूर्ण तरीके से स्वीकारने का आदत बनाइये। वह चाहे आपका अच्छाई हो सकता है या फिर खामियां हो।

दरअसल हम अगर किस चीज को बुरे के नजरों से देखें तो उसके प्रति हमारा नजरिया ही नकारात्मक हो जाता है, लेकिन अगर किसी चीज़ को खामी के रूप में देखे, तो सुधार की संभावना अधिक रहता है।

क्योंकि हम अपने बारे में बहुत सारे चीजों को बिलकुल भी बदल नही सकते है, हाँ लेकिन उनसब के प्रति अपना मानसिकता जरुर बदल सकते है।

3b. खुद से प्यार

दूसरा, खुद से प्यार करने का मतलब आपनेआप के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ख्याल रखने से है। जैसे कि अपने पसंदीदा शौक में मशगुल रहने से है।

जब कोई शख्स पहली बार खुद से प्यार करना सीखना शुरू करता है तो इसमें समय और मेहनत दोनों ही लगता है। हमें धैर्य और संयम निरंतर बनाये रखना होगा। इसी तरह जब हम खुद से प्यार लगते है तो हम, वही व्यवहार दूसरों से करते हैं। यानी कि दुनिया में लोगों के बीच अधिक प्यार बाँटेंगे।

3c. वास्तविक व्यक्तित्व को अपनाएं

अंत में, हमेशा याद रखिए, कोई भी इंसान पूर्ण नही है। हम इंटरनेट में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर के वीडियोस को देखकर उसे वास्तविक जीवन से जोड़ देते हैं।

जबकि हकीकत यह है कि वीडियोस में दिखाई जाने वाला लोगों के जीवन का, वास्तविकता से बिलकुल कोई संबंध नही रहता है। इन आभासी धारणाओं से उठकर अपने वास्तविक व्यक्तित्व को अपनाएं।

स्व-प्रेम को लोग कई बार स्वार्थपन से जोड़कर तुलना करते है, लेकिन इसकी वास्तविकता बिलकुल उलट है। जो इंसान खुद को बेहतर प्यार करना जानता होगा, वह दूसरों में भी प्यार ही बांटना जानेगा।

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4. भय और चिंता पर काबू पाना

भय और चिंता हर व्यक्ति के अन्दर होता है। हालाँकि हर इंसान के अन्दर एक सीमित मात्रा में भय और चिंता जरुर होना चाहिए। क्योंकि यही वजह से हम खुद में सुधार भी करते है।

लेकिन यही चीजे किसी में अधिक हावी हो जाए, तो उसके जीवन को ही पीछे धेकेल देता है। परिणामस्वरूप ये हमारे लक्ष्य को हासिल करने के राह में अवरोध बनकर खड़े होते हैं।

इसलिए, सबसे पहले यह पता लगाइए कि, आपको आखिर भय और चिंता किस वजह से महसूस होता है..! एक बार जब उन कारणों की पहचान हो जाए, तब इसे जीतने की दिशा में छोटे-छोटे उपायों को खोजें।

इसमें आपके परिवार के लोग, मित्र, शिक्षक भी सहयोग ले तो अधिक साहस मिलता है।

5. कौशल से स्वयं को सशक्त बनाना

मान लीजिए कि, विद्यालय में समाज सेवा पर आपको 20 मिनट भाषण देने के लिए कहा गया हो। अगर आपको समाज सेवा के बारे में जानकारी अच्छे से मालुम हो, तो निश्चय ही 20 मिनट तक भाषण देने में कोई कठिनाई नही होगा।

लेकिन अगर आपको समाज सेवा विषय पर अच्छी जानकारी नही है तो, आपके लिए 10 मिनट भाषण देना भी मुश्किल होगा। जब आप मंच पर बोलने के लिए खड़े होंगे या प्रस्तुत होंगे, तब आप कोशिश कीजियेगा कि, जितना जल्दी हो सके स्टेज या मंच से उतर जायें।

यानी कि साफ़ कहा जा सकता है कि, ज्ञान के साथ निपुणता यदि ना हो, तो हमारा आत्मविश्वास भी नही झलकता है। इसलिए ज्ञान भी एक कारक है, जो आपको आत्मविश्वासी बनाता है।

अतः किसी भी ज्ञान और विशेषज्ञता पर निपुणता आवश्यक है। हाँ, हर कोई हर क्षेत्र में निपुण हो जाए, यह संभव नही है। लेकिन आप जिस क्षेत्र से जुड़े हो, उसी में पारंगता हासिल कर लेना पर्याप्त होगा।

इसके लिए उन कौशलों को सीखना शुरू कीजिए, जिसमें आपको भरोसा हो कि आप इसमें आवश्य बाकियों से अधिक पारंगत हो सकते हो. इसके अलावा इन नए चीजों को सिखने पर, संज्ञानात्मक क्षमता में सुधार, रचनात्मकता में वृद्धि और दृष्टिकोण को व्यापक दायरा मिलता है।

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6. स्व-देखभाल का महत्व

स्व-देखभाल के महत्व को जानने से पहले स्व-देखभाल के अर्थ को समझना आवश्यक है। हालिया कई वर्षों से “आत्म-देखभाल” ने लोगों का ध्यान काफी आकर्षित किया है।

स्व-देखभाल, को सरल शब्दों में परिभाषित किया जाए, तो इसका अर्थ “वह सब कुछ है जो एक व्यक्ति निजी हित के लिए मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक भलाई को बढ़ाने के उद्देश्य से करता है”।

हालाँकि प्रत्येक व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते है। क्योंकि सबके जीवन की प्राथमिकताएं एक-दूसरें से बिलकुल अलग होते है। परन्तु कुछ गतिविधियाँ सबके लिए सामान्य है। जैसे कि,

  • सुबह की सैर पर जाना,
  • योगा या एक्सरसाइज करना,
  • समय पर खान-पान करना,
  • परिवार के साथ समय बिताना आदि।

लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इंसानों का जीवनशैली भी काफी व्यस्त हो चुका है। इसी व्यस्तताओं में फंसकर, लोग अपना ख्याल रखना ही भूल गये।

किसी को समय पर खाना खाने से फुरसत नही, तो कोई समय पर सोता नही, तो कोई कुर्सी पर बैठे पूरा दिन बिता देता है। ये सभी आदतें अच्छे जीवनशैली के उदहारण नही है।

आपने पाया होगा कि जो लोग जिम जाते है, उनमें काफी आत्मविश्वास होता है। इनका एक स्टैण्डर्ड लाइफस्टाइल होता है, जिसका वे हमेशा अनुसरण करते है। जैसे समय पर उठाना, संतुलित भोजन करना, तरीके के कपड़े पहनना आदि।

यानी कि ये लोग अपने बहुत ख्याल रखते है। इसीलिए आत्मविश्वास का सीधा संबंध स्व-देखभाल से है। क्योंकि जब तक अपने अन्दर सुधार नही करोगे तब तक आत्मविश्वास पैदा नही होगा।

यही कारण है कि, जो इंसान व्यस्त जीवनशैली में भी अपने विकास के लिए पर्याप्त समय निकालता है, वह अधिक आत्मविश्वासी होता है।

7. अपनेआप को सकारात्मकता से घेरना

क्या आपने कभी गौर किया है, जो इंसान आलसी, ईर्ष्या, अभिमानी, स्वार्थीपन से भरा होता है, वह हमेशा छोटे-छोटे बातों पर किसी से भी बहस करने को उतारू रहते है।

आप भी इन्ही लोगों के संगतियों में मिले रहेंगे, तो आपका जीवन भी कुछ दिनों बाद इनके तरह ही बेकार होयेगा।

इसलिए अगर आप जीवन में कुछ अच्छा हासिल करना चाहता हो, तो उन्ही लोगों के साथ उठाना-बैठना करिए जो लोग सकारात्मक व्यवहार, कर्मों एवं विचारों पर चर्चाएँ करते हो। तभी आपमें आत्मविश्वास बढ़ेगा।

जैसे, मान लीजिए कि एक छात्र जो अबतक कोई प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण नही कर पाया हो, उसके पास हज़ार बहाने होते है, कि किस वजह से वह प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण नही कर पाया।

लेकिन जिस छात्र ने प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण किया होगा, उसके पास सिर्फ एक कारण होता है कि, आखिर कैसे और किस तरीके से प्रतियोगी परीक्षा को अधिकतम अंकों से उत्तीर्ण किया जाए।

तो, निष्कर्ष यही बनता है कि, अगर आपको किसी प्रतियोगी परीक्षा का तैयारी शुरू करना है तो, आप सफल अभ्यर्थी से सलाह लेंगे ना कि असफल अभ्यर्थी से। क्योंकि सफल अभ्यर्थी में, असफल अभ्यर्थी के तुलना में अधिक आत्मविश्वास होता है।

इसलिए जो इंसान अपने जीवन के हरेक पहलु को सकारात्मकता से जोड़ने में सक्षम होगा, वही इंसान अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक आत्मविश्वासी बनकर उठ खड़ा होगा। क्योंकि आत्मविश्वास के बिना सफलता अधूरा रह जायेगा। हमेशा अच्छे संगति को ही चुनिए।

8. अंतिम सुझाव

इस लेख के अंतिम हिस्से तक आपका पहुँचाना, यह वाकई साबित कर देता है कि आप निश्चित ही अपने आत्मविश्वास को ऊँचाइयों तक ले जाना चाहते हो।

तो मैं यही कहूँगा कि, आप आज से, इसी वक़्त से ये निर्णय ले कि आज के बाद कभी भी अपनी तुलना दूसरे से नही करेंगे। आप में जो गुण है, वह बेहद ख़ास है, जो आपको दूसरों से बिलकुल अलग बनाता है।

और जो कमियां होंगे, उनमें सुधार करके खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करूँगा। अपने कमजोरियों को कोसने के बजाय, अपने ताकतों पर ध्यान देना शुरू कीजिए।

जीवन में वैसे लोगों के साथ मिलना जुलना बढ़ाइये, जो आपके हमेशा सही रास्ता दिखाए, और सही और गलत में फर्क को बिना किसी स्वार्थ के बताएगा।

उनलोगों को अपने जीवन में तनिक भी जगह बनाने मत दीजिए, जो आपसे मतलब से मिलने आयें या उनके रिश्ते बनाने के पीछे कोई निजी स्वार्थ छिपा होगा। आप निश्चय एक पहले से अधिक आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनेंगे।

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