पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | भूमिका, प्रकार, रोकथाम, उपसंहार

पर्यावरण प्रदूषण वाकई वैश्विक चिंता का विषय है। वास्तव में, आज हम जिस प्रकृति का गुणगान करते हैं, इसकी खूबसूरती दशकों पहले, आज से कई गुना ज्यादा थी।

रात को जुगुनुओं का चमकना, बगीचों में चिड़ियों की चहचाहट, ताज़ी हवा का अनुभव, रात्रि पहर में खुले नभ तारों को गिनने की उत्सुकता की बात ही कुछ ओर था। परंतु ये सब कौतूहल वर्त्तमान समय में नसीब ही कंहा है।

आज शहरों में बिना फ़िल्टर किये पानी पीना ही असंभव है। धुल-कोहरे ने आसमान को इतना ढक दिया है कि, तारे गिनना छोड़िये, हमें साफ़-साफ़ चन्द्रमा तक दिखाई नही देता। जुगुनू तो ना जाने कंहा गायब ही हो गयें है।

हम बात कर रहें है पर्यावरण प्रदुषण का, जिसकी वजह से हमारा प्यारा पृथिवी को अविश्वसनीय नुकसान झेलना पड़ रहा है। विकास के नाम पर हमने बेपरवाह तरीके से औद्योगीकरण को इतना बढ़ावा दिया कि, आज पृथिवी को इतने गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं।

आज के इस लेख में पर्यावरण प्रदुषण को समझेंगे और उन सभी ठोस क़दमों को उठाएंगे जिससे पृथिवी में हरियाली वापस आयें।

1. प्रस्तावना

पर्यावरण प्रदूषण वह गंभीर समस्या है, जिसका प्रभाव पृथिवी पर निवास करने वाले सभी जीवों पर होता है। क्योंकि प्रदूषण का असर उन प्राणियों पर भी पड़ा है, जिन्होंने इस पर्यावण को प्रत्यक्ष तरीके से हानि नही पहुँचाया हो।

यही कारण है कि, मानवीय गतिविधियों का सीधा प्रभाव बाकी जीव-जंतुओं पर भी हो रहा। इन दुष्प्रभावों के जिम्मेदार न सिर्फ बड़ी-बड़ी कारखानों है, बल्कि हमारे दैनिक जीवन के गतिविधियां भी शामिल है।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक का अधिक इस्तेमाल, रासायनिक खादों को कृषि में इस्तेमाल, रेफ्रीजरेटर का उपयोग आदि। हम अपने दैनिक जरूरतों और क्रियाओं द्वारा मुर्खतापूर्वक कृत्यों से उसी पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे, जिससे हमारा ही अस्तित्व निर्भर करता है।

2. परिभाषा: पर्यावरण प्रदूषण क्या है

पर्यावरण में मानवीय हस्तक्षेप से या प्राकृतिक अवांछित पदार्थों में वृद्धि होना, पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। यंहा मानव निर्मित अवांछित पदार्थ से तात्पर्य ऐसे पदार्थ जो सीधे मानवीय हस्तक्षेप द्वारा उत्पन्न होते हैं।

जैसे कि :- प्लास्टिक निर्मित वस्तुएं, थेर्मोकोल, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट, खदानों से उत्पादित भारी धातुएं, कारखानों से उत्सर्जित अम्लीय द्रव्य, वाहनों से उत्सर्जित सल्फर ऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड, रेफ्रीजिरेटर से क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि।

जबकि प्राकृतिक अवांछित पदार्थ से आशय उन पदार्थों से है जो मनुष्यों के हस्तक्षेप तथा प्राकृतिक, दोनों तरह से उत्पन्न होते हैं। परन्तु प्राकृतिक रूप से भी घटते हैं।

जैसे कि पारंपरिक उर्जा स्रोत जैसे कोयले, लकड़ी, गोबर के उपलों से धुएं निकलना, ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न हानिकारक गैसे, जंगलो में लगने वाले आग से उत्सर्जित कार्बन मोनो ऑक्साइड, आदि से है।

”आपके द्वारा फेंके गये कचरे को, अगले दिन कोई अनपढ़ व्यक्ति उठाता है तो, आपके शिक्षित होने का कोई अर्थ नही रह जाता हैं।”

3. पर्यावरण प्रदूषण के कारण

  • जीवाश्म ईंधन जलाने पर सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों का हवा में मिलना।
  • औद्योगिक गतिविधियों से उत्सर्जित रसायनिक, भारी धातु और खतरनाक अपशिष्टों का उत्सर्जन।
  • खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग।
  • वनों की कटाई और भूमि उपयोग के अन्य रूपों में परिवर्तन से जैव विविधता का कम होना और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना।
  • अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन जैसे खुला कूड़ेदान और अवैध कचड़ा डंपिंग।
  • खनन गतिविधियाँ से पर्यावरण में भारी धातुओं, एसिड माइन ड्रेनेज और अवसादन सहित कई प्रदूषकों का मिलना।
  • सीसा, पारा और कैडमियम जैसी भारी धातुओं का औद्योगिक प्रक्रियाओं और अपशिष्ट निपटान के माध्यम से पर्यावरण में प्रवेश करना।
  • जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों की बढ़ती खपत और शहरीकरण के परिणामस्वरूप वन्य जीवन और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान।
  • औद्योगिक प्रदूषण द्वारा निर्मित अम्ल वर्षा से जैव विविधता को नुकसान होना।
  • माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों का वातावरण में घुलना जिससे, प्रकृति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा होना।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाला रेडियोधर्मी कचरा।
  • बिजली के कचरे, जैसे खराब लैपटॉप, चार्जर्स, प्रिंटर्स और मोबाइल फोन जैसे डिवाइसेस को खुले में जलाने में खतरनाक रसायन और धातुएं का निकलना।
  • रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और शाकनाशियों का मिट्टी और पानी में मिलकर संदूषण बढ़ाना।

4. पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

आर्थिक विकास के भाग-दौड़ में लगभग सभी देशों नें प्राकृतिक संसाधनों का असीमित दोहन किया। सभी का प्रमुख कारण, अन्धाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण ही है।

इसी पर्यावरणीय संरक्षण के अवहेलना के कारण ही ग्लोबल वोर्मिंग, जल स्रोतों का दूषित होना, मृदा उर्वरकता में कमी, भूजल स्तर का नीचे जाना, अम्लीय वर्षा, असामयिक ऋतु परिवर्तन, प्रदूषित हवा, बाढ़ आना, भूस्खलन होना, महामारी फैलना, आदि जैसे चुनौतियों बनते हैं।

अधिक चुनौती अविकसित और विकाशील देशों के लिए है, क्योंकि इनके पास पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव रहता है। पर्यावरण प्रदूषणों का अध्ययन कई विभिन्न प्रकारों से किया जाता है।

जैसे कि, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, ऊष्मीय प्रदूषण होते हैं, पर आज सिर्फ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण पर ही चर्चा करेंगे

4a. वायु प्रदूषण

मानवजनित या प्राकृतिक कारणों द्वारा वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न गैसीय अनुपात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना वायु प्रदूषण कहलाता हैं।

अन्य शब्दों में :- पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न गैसों के संतुलित अनुपात में मानवीय या प्राकृतिक कारणों से प्रतिकूल प्रभाव पड़ना वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु प्रदूषण के कारण पर्यावरण में नकारात्मक असर होता है।

वायु बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नही है। पृथ्वी का वायुमंडल उन सभी विभिन्न गैसों के मिश्रण से बना है, जो जीवन के लिए अनुकल है:- नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बनडाइऑक्साइड, तथा अन्य गैस आदि पाए जाते हैं।

प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए पौधे कार्बनडाइऑक्साइड गैस को वातावरण से अवशोषित करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान पौधे ऑक्सीजन गैस उत्सर्जित करते है, जो पशु-पक्षियों, मनुष्यों, जलीय जीवों के जीविका संभव बनता है।

पेड़-पौधे खाद्य ‌‍‌‍‌‍श्रृंखला के प्रथम पायदान पर आतें है, और शेष जीव-जंतु इन्हीं पर आश्रित होतें हैं। लेकिन बड़ते नगरीकरण से जंगलों का ह्रास तेजी से हो रहा है, जिस कारण कार्बनडाइऑक्साइड गैस अवशोषण, प्रकृति में कम हुआ है।

जंगलों को आग से नही बचा पाना भी CO2 गैस के बढ़ने का कारण है। कारखानों से उत्सर्जित सल्फर, नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस के अम्लीय वर्षा का मुख्य कारण है।

वायुमंडल का सबसे अभिन्न अंग ओजोन परत जो कि सूरज से आने वाले हानिकारक पराबैगानिक किरणों को पृथ्वी के अन्दर आने से रोकता हैं। रेफ्रीजिरेटर , एयर कंडीशनर में इस्तेमाल होने वाला क्लोरो फ्लोरो कार्बन से, ओजोन परत को तेज़ी से क्षति पहुंचता है।

हमारे शरीर में श्वसनतंत्र से होकर हिमोग्लोबिन में कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के प्रवेश होने से, हिमोग्लोबिन के ऑक्सीजन सोखने के क्षमता को अवरुद्ध करता है। ग्लोबल वोर्मिंग बढ़ा और ध्रुवों में बर्फ पिघलने के गति में तेजी आया। समुद्री जल स्तर भी बढ़ने लगा है।

4b. जल प्रदूषण

प्राणियों में जीवन संचरण के लिए जल अनिवार्य तत्व है। क्योंकि जल ही प्राणियों के शरीर के सभी अंगों में पोषक तत्व को पहुचानें का कार्य होता है। इसीलिए कहा भी गया है “जल ही जीवन हैं”।

यही वजह है कि हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष में जीवन खोज में रहते हैं तो सबसे पहले जल के मौजूदगी पता लगते हैं। जल दैनिक जीवन में, खेतीबारी, जल विद्युत् परियोजनाओं, मछली पालन आदि में महत्वपूर्ण है।

पेय जल का अधिकांश भाग , हिमखंडों, भूमिगत जल, झील-तालाब, आदि स्थानों पर पाए जाते हैं। समग्र जल का अधिकांश हिस्सा समुद्र में हैं। समुद्री जल खारा होने के कारण पेय योग्य नही हैं।

बड़ते आद्योगिक नगरों के आर्थिक गति से अपशिष्ट पदार्थ भी बहुतायत मात्र में उत्पन्न होतें हैं। जंहा अधिकांश प्रदूषक तत्त्व नालियों में प्रवाह किया जाता है।

जल प्रदूषण के कई कारक हैं सीवेज पानी को नदियों में प्रवाहित करना, रसायनिक खाद का इस्तेमाल, औद्योगिक रासायनिक प्रदूषक जैसे- क्लोराइड, कार्बोनेट, नाइट्रेट्स, आदि। अजैव अपशिष्ट पदार्थ प्लास्टिक, थेर्मोकोल, कांच, फोम आदि।

इस कारण जलीय जीव भी प्रभावित होतें हैं। जल में हानिकारक अवयव घुलने से जल में ऑक्सीजन मात्रा में कमी होता हैं। सूर्य प्रकाश जलीय स्रोतों के तल तक नही पहुच पातें हैं। इससे जलीय पादपों के वृद्धि पर असर पड़ता हैं।

मछलियों के श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र को अम्लीय जल से हानि होता है। यही मछलियाँ अनजाने में हमारे आहार द्वारा गंभीर बिमारग्रस्त बनाते हैं। मलेरिया, डायरिया, हैजा, टाइफाइड, आदि दूषित पानी से होने वाले कुछ बिमारियां हैं।

4c. मृदा प्रदूषण

मिट्टी में ऐसे अवयवों का घुलने से जिसके कारण मृदा के जल धारण क्षमता, ह्युमस के मात्रा, उर्वरा शक्ति आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना ही मृदा प्रदूषण कहलाता हैं। पर्यावरण प्रदुषण का अधिकांश भाग मानवजनित कारकों से उत्पन्न होता है।

इस तरह के प्रदूषण से फसलों, वनस्पतियों, तथा उनमे रहने वाले सुक्ष्म जीवाणुओं को हानि पहुचता है। इसका प्रभाव खाद्य श्रृंखला के बाकी जीवों पर भी होता है। वनस्पतियों के नही उपजने से उस स्थल के मृदा में अपरदन होने से भूमि बंजर बने जाते हैं।

क्योंकि पेड़-पोधे ही जड़ों से मृदा अपरदन रोकते हैं। इस कारण वंहा रहने वाले पशु-पक्षियॉ अन्य स्थान में प्रवासित करते हैं।

मृदा प्रदूषण के कई कारकों में से निम्न कारक:- अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों को प्रयोग, कारखानों से निकलते अपरिष्कृत जल को खुले में बहा देना, अम्लीय वर्षा से मृदा में pH कम हो जाना।

4d. ध्वनि प्रदूषण

सामान्य श्रवण क्षमता के अधिक तीव्रता के ध्वनि के कारण मानव से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि के इस प्रभाव को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं।

ध्वनि प्रदुषण से श्रव्य शक्ति में ह्रास, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, मानसिक बीमारी, अवसाद इत्यादि अनेक बीमारियाँ घेर लेते हैं।

ध्वनि प्रदुषण कई कारणों से उत्पन्न होते हैं:- ऊँची आवाज़ में गाने सुनने से, धातु के कलपुर्जों का सही रखरखाव नही रखने से, एयरपोर्ट किनारे, एक्सप्रेसवे या भीड़ भार इलाकों पर, वाहनों के loud exaust, या प्रेशरहॉर्न का इस्तेमाल से भी ध्वनि प्रदूषण होता है।

5. पर्यावरण प्रदूषण निवारण के उपाय

पर्यावरण प्रदूषण शत प्रतिशत रोक नही सकते। क्योंकि विश्व के आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन जरुरी हैं। यानी कि अपशिष्ट पदार्थ का उत्सर्जन रोका नही जा सकता।

लेकिन पर्यावरण प्रदूषण कम किया जा सकता हैं। पर्यावरण प्रदूषण कम करने के कुछ प्रभावकारी उपाय निम्नलिखित हैं।

5a. समाज में जागरूकता फैलाना

पर्यावरण संरक्षण में सबसे पहला उपयोगी कदम समाज में जागरूकता फैलाना हैं। आज भी समाज का बड़ा तबका पर्यावरण संरक्षण के विचार को लेकर उदासीन हैं। यही वजह है कि पार्क, सड़क किनारे, नदियों, नालों, पर्यटन स्थल आदि में गन्दगी नजर आता है। इस सोच को सबसे पहले बदलना जरुरी हैं।

5b. अक्षय संसाधनों का उपयोग

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय संसाधन पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हैं। दूसरी ओर, कोयले से ऊर्जा का उत्पादन उच्च वायु प्रदूषण का कारण बनता है। साथ ही घरेलु उर्जा के पारंपरिक स्रोतों में लकड़ी, गोबर के उपले, कोयले से ज्यादा बेहतर होगा कि हम CNG गैस(रसोई गैस) का ही इस्तेमाल करें।

5c. खेतों में जैविक खाद का प्रयोग

खेतों में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से न केवल मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव मर जाते हैं बल्कि जैविक खाद बनने से भी रोकते हैं। इससे बंजर भूमि हो जाती है। पर्यावरण की रक्षा के लिए जरूरी है कि खेतों में जैविक खाद का प्रयोग किया जाए।

5d. वन क्षेत्रों का बढ़ावा देना

जितने अधिक वन क्षेत्र रहेंगे, उतनी ही अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस अवशोषित होगी, जिससे पृथ्वी का तापमान संतुलित रहेगा। वृक्षों की जड़ें मृदा अपरदन को भी कम करती हैं। इसलिए वन क्षेत्रों को बढ़ावा देना पर्यावरण संरक्षण का प्रभावी उपाय है।

5e. पर्यावरण संरक्षण में सरकार का सहयोग

अपशिष्ट प्रबंधन, वनीकरण और अन्य पर्यावरण संरक्षण उपायों जैसे कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार को इन कार्यों में सहयोग देने के लिए आगे आना चाहिए।

5f. शैक्षणिक पाठ्यक्रम में पर्यावरण संरक्षण जोड़ना

बच्चों को बल्यापन में जो चीज़े सिखाया जाता है, उसे जिंदगी भर याद रह जाता है। इसीलिए बचपन से ही बच्चों को प्रकृति से प्रेम सीखाना काफी उपयुक्त कदम होगा।

इससे यह उनके नैसर्गिक गुण का हिस्सा बन जाएगा। उच्च कक्षाओं में भी सिखाने से, पर्यावरण के प्रति प्रभावशाली कदम उठाएंगे। सकारात्मक विचार सतत बने रहते हैं।

5g. स्ट्रीट प्ले, रैली

नुक्कड़ नाटकों, रैलियों और समारोहों के आयोजन से लोगों को पर्यावरण संरक्षण उपायों के बारे में जागरूक किया जा सकता है। इससे समाज को प्रकृति से और अधिक जुड़ने में मदद मिलेगी।

5h. अपशिष्ट पदार्थों का उचित प्रबंधन

घरेलू जैविक अपशिष्ट, प्लास्टिक, चिकित्सा अपशिष्ट और अन्य ठोस अपशिष्ट का विभिन्न तरीकों से निपटान करने के लिए उचित प्रबंधन आवश्यक है। लोहे-प्लास्टिक की वस्तुओं को पुनर्चक्रित करना, खाद के लिए जैविक कचरे का उपयोग करना और दहन संयंत्र में चिकित्सा अपशिष्ट को जलाना ही अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के कुछ प्रभावी तरीके हैं।

5i. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा

डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहन हवा में बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यातायात क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रदूषण होता है। दूसरी ओर इलेक्ट्रिक वाहन जहरीली गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं, जो पर्यावरण में शुद्धता बनाए रखने में मदद करता है।

5j. सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना

अगर 30 व्यक्ति अपने निजी वाहन से रोजमर्रा के काम को करें, और अन्य 30 व्यक्ति सार्वजनिक बस का उपयोग करें , तो अंतर साफ़ नजर आता है।

निजी वाहनों के ज्यादा इस्तेमाल से ज्यादा धुआं उत्सर्जित होता है। पेट्रोल-डीजल खपत ज्यादा होगा। ट्रैफिक जाम होंगे। वही अगर 30 अलग अलग वाहनों के बजाय एक सार्वजनिक वाहन के उपयोग से उल्लेखित समस्यों निम्न हो जायेंगे।

6. कुछ प्रतिष्ठित पर्यावरणविद् जिन्होंने भारत में प्रकृति संरक्षण के लिए योगदान दिया।

नामयोगदान
सलीम अलीपक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी जिन्होंने भारतीय पक्षियों का अध्ययन और दस्तावेजीकरण किया
सुंदरलाल बहुगुणावनों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पर्यावरणविद्
मेधा पाटकरसामाजिक कार्यकर्ता जिन्होंने नर्मदा बांध परियोजना के खिलाफ लड़ाई लड़ी
राजेंद्र सिंहजल संरक्षणवादी जिन्होंने राजस्थान में कई नदियों को पुनर्जीवित किया
अपराजिता दत्तावन्यजीव जीवविज्ञानी जिन्होंने पूर्वोत्तर भारत में हॉर्नबिल के संरक्षण के लिए अध्ययन किया और काम किया
वाल्मीक थापरवन्यजीव संरक्षणवादी और लेखक जिन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए काम किया
कैलाश सांखला वन्यजीव संरक्षणवादी जिन्होंने भारतीय वन्यजीव संस्थान की स्थापना की
सालूमरदा थिम्मक्कावह कर्नाटक की एक पर्यावरणविद् हैं, जिन्होंने राजमार्ग के किनारे 8,000 से अधिक पेड़ लगाए और उनकी देखभाल की।

7. पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत सरकार की कुछ पहल

नीतियाँ एवं अधिनियम
राष्ट्रीय वन नीति, 1988
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल,2010
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति, 2014
राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम, 2002
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, 1985
राष्ट्रीय वनीकरण और पर्यावरण-विकास, 1992
वन संरक्षण अधिनियम, 1980

6. उपसंहार

पर्यावरण प्रदूषण किसी भी देश का व्यक्तिगत समस्या नही है। अपितु सभी देशों के अपने अलग अलग चुनौतियां है। कुछ मामलों में सभी देशों का सामूहिक समस्या है। जंहा विकास है वही विस्थापन भी हैं।

बड़ते जनसँख्या दवाब और उसके मांग को पूरा करना सभी देशों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसी मांग पूर्ति के लिए प्रदूषण बढ़ रहे हैं। हमें हमेशा ज्ञात होना चाहिए कि पर्यावरण के कारण ही मनुष्य अस्तित्व बना है।

हमें आर्थिक, सामाजिक विकास के उस राह को अपनाना होगा, जिससे पर्यावरण क्षति कम पहुंचे। इससे भविष्य पीढ़ी संरक्षित होगा ।पर्यावरण प्रदूषण कम करने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा। तभी पर्यावरण संरक्षित रहेगा।

एक कड़वा सच यह भी है कि लोग कचरे को कुड़ेदान में इसलिए भी फेंकते हैं , क्यूंकि खुले में कचरा फेंकने पर प्रशासन जुर्माना वसूलेगा। अधिकतर लोग पर्यावरण संकट से ज्यादा, जुर्माने से बचने के लिए कचरा प्रबंधन करते हैं।

स्वच्छ पानी में कचरा और हानिकारक रसायन को मिलने से रोकना है। कारखानों, घरों, नालों, से उत्सर्जित प्रदूषित पानी को सीधे नदियों में मिलाने से रोकना होगा। दूषित पानी को परिस्कृत करने के लिए प्रबंधन जरुरी है।

प्रदूषित पानी के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों में ऑक्सीजन मात्रा घटता है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव जलीय जीवो पर पड़ता है। कृषि के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना होगा।

कृषि के उन्नत तरीकों के उपयोग से कम पानी, खाद में ही उन्नत फसलें उगाये जा सकते है। इससे पानी का बचत होगा। मिट्टी के प्रकृति को जांचकर खेती करने से खादों का प्रयोग कम मात्र में होगा। इससे मृदा में रासायनिक खादों के दुरुपयोग को कम कर सकते हैं।

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