मृदा प्रदूषण अति गंभीर समस्या बनता जा रहा। इसका कारण लोगों में धरती के प्रति सहानभूति कम होना। लोग शिक्षित होने के वाबजूद जंहा-तहां गन्दगी फैलाते हैं।
यही कारण हर जगह प्लास्टिक टुकड़े, थेर्मोकोल, जैसे अजैविक अपशिष्ट देखने मिल जायेंगे। उदाहरण जैसे, आपने नए साल पर पिकनिक स्पॉट पर एंजोयमेंट करके कितना ही प्रदूषण फैलाते देखे होंगे।
लोग नैतिक जिम्मेदारियां भूल जाते है। मृदा बिना जीवन कल्पना असंभव है। चलिए आज के पोस्ट द्वारा मृदा प्रदूषण पर चर्चा करेंगे।

1. प्रस्तावना
अनुकूल जीवन के लिए भूमि भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पानी की। कार्बनिक और अकार्बनिक दोनों तत्वों के मिश्रण से मृदा बनी है। यह पृथिवी की सबसे उपरी सतह है। इसका निर्माण निरंतर गतिशील प्रक्रिया है, जिसे बनने में कई वर्ष लगते हैं।
मिट्टी निर्माण विभिन्न कारकों जैसे कि चट्टानों का विखंडन, जलवायु, वनस्पति और जीव, स्थलाकृति पर निर्भर हैं। पृथ्वी प्रदूषण कोई नई बात नहीं है। यह पृथ्वी निर्माण काल से चला आ रहा है।
लेकिन बढ़ती आबादी की मांग और आपूर्ति समय पर पूरी करने की होड़ में पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ, जिसमें मृदा प्रदूषण भी शामिल है।
2. परिभाषा
मृदा प्रदूषण की समस्या, मानव और पर्यावरणीय के प्रतिकूल हस्तक्षेप से बनते है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता, उर्वरा शक्ति में कमी आये, मृदा प्रदूषण कहलाता है। मृदा प्रदूषण से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
3. प्रदूषित मृदा के स्रोत/ कारण

- 1.अम्लीय वर्षा वातावरण से दूषित पदार्थों को पृथ्वी पर लाती है।
- 2.कारखानों से मिट्टी में प्रदूषक निर्वहन
- 3.अनियमित खनन कार्य
- 4.अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन
- 5.कीटनाशकों और उर्वरकों का अति प्रयोग
- 6.जमीन पर रेडियोधर्मी टेस्ट करना
- 7.गैर जैविक अपशिष्ट दहन
- 8.लोगों के बीच अपर्याप्त जागरूकता
- 9.वनों का अंधाधुंध कटाई
4. मृदा प्रदूषण के प्रभाव / परिणाम
1.रेडियोधर्मी परीक्षणों द्वारा भी भूमि प्रदूषित होते हैं। अधिकांश परमाणु परीक्षण भूमिगत किये जा रहे, जिससे मिट्टी विकिरण प्रभाव से नष्ट हो रहा।
2.खनन प्रक्रिया द्वारा निकलने वाले खनिज पदार्थों का मालवा ढुलाई प्रक्रिया में आसपास इलाकों में फैलकर प्रदूषित करते है। वर्षा ऋतू में यही महीनकण विस्तृत क्षेत्रों को प्रभावित कर देंगे।
3.कारखानों से निकलनेवाली जहरीली गैसें बारिश में मिलकर मिट्टी पर पहुँचती है, जिसे अम्ल वर्षा कहते है। अम्ल वर्षा से मिट्टी की विषाक्तता पोधों में पहुचेंगे। उसके बाद आहार श्रृंखला से होते हुए मानव शरीर में प्रवेश करते है।
4.जैविक कूड़ा-कचरा तभी उर्वरक बनते है, जब उनका निपटारा नीतिगत तरीके से किया गया हो। अन्यथा इनके कारण भी जमीन प्रदूषित होता है। आज शहरों की सबसे बड़ी समस्या कूड़ा कचरा प्रबंधन समस्या है। आपने अक्सर शहर के बाहरी इलाकों में कचरे के बड़े बड़े ढेर जरुर देखे होंगे।

5. वस्त्र, रंग, कपड़ा जैसे उद्योगों आदि से निकलने वाला अवशेष को खुले मैदानों या नदियों में स्रावित करते है, जिससे जल और मृदा दोनों प्रदूषित होती है।
6.कम समय पर अत्यधिक अनाज उत्पादन की होड़ में लोग जेविक खाद के स्थान पर असीमित रासायनिक खादों के साथ रासायनिक कीटनाशक बेधड़क प्रयोग कर रहे हैं। जिससे कृषि में रासायनिक कीटनाशकों के अतिप्रयोग, मिट्टी में उपस्थित शुक्ष्मजीव को नष्ट कर देते है।
7.कमजोर सरकारी नीतियाँ भी प्रदूषण को बढ़ावा देते है। कई बार कम्पनियाँ सरकारी नियम के लूपहोल का फ़ायदा उठाकर, प्रदूषण मानकों का अवहेलना भी करते हैं।

8.वनों का अंधाधुंध कटाई से मिट्टी में जैव-अजैव संतुलन बिगड़ता है।
5. मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय
मृदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सबसे पहले मिट्टी को दूषित करनेवाले कारकों पर नियंत्रण जरुरी है।
1. जैविक कूड़ा कचरा को कम्पोस्ट खाद के रूप में बदलकर उपयोग करना होगा।
2.रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाइयों के जगह हरसंभव जैविक एवं प्राकृतिक खाद को कृषि में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
3. पुनःचक्रनीय योग्य अपशिष्ट पदार्थों को पुनर्चक्रण विधि द्वारा या तो उपयुक्त निपटारा किया जाए या फिर पुनः प्रयोग अनुकूल बनाया जाए।
4. जमीन को प्रदूषित होने से रोकने हेतु विभिन्न अनुसन्धान कार्य को प्रसार एवं प्राथमिकता देना चाहिए।
5.अति पशुचारण तथा अंधाधुंध वन कटाई पर यथासंभव नियंत्रण।
6.भूमिगत परमाणु परीक्षण पर जब तक अतिआवश्यक ना हो, प्रतिबंधित रहना जरुरी।
7.पर्यावरण के प्रति जनजागरूकता फैलाना अतिमहत्वपूर्ण कदम।
8.वनों के अनियंत्रित ह्रास को रोकना होगा।
6. निष्कर्ष
वैश्विक स्तर पर प्रदूषण समस्या रुक नही रहा है। और हम भोजन के लिए जितना अधिक अन्य देशों पर आश्रित रहेंगे, भविष्य उतना ही चुनौतीपूर्ण रहेगा। किसी भी देश के विकास लिए, आबादी का स्वास्थ्य होना प्राथमिक आवश्यकता है जो स्वच्छ भोजन से ही प्राप्त होगा। इसके लिए मृदा संरक्षण आवश्यक है।
प्रदूषित मृदा को पुनः स्वच्छ बना पाना लगभग असंभव होगा। क्योंकि जो घुलनशील अपशिष्ट पदार्थ भूमिगत हों गए, या फिर जो प्लास्टिक के टुकड़े यत्र-तत्र जमींन में अन्दर दबे हो। उन्हें स्वच्छ कर पाना मुश्किल होगा। हमारा कोशिश होना चाहिए कि, भविष्य पर नीतिगत उपयुक्त कदम उठाये जाए।
और मौजूदा हालात को नियंत्रण पर लाने की कोशिश करें। ताकि भावी पीढ़ी सुरक्षित बने। तकनीकी नवाचार प्रयोग द्वारा मृदा प्रदूषण कम करने के हर संभव प्रयास किया जाए।