एक आदर्श शिक्षक का कर्त्तव्य मात्र कक्षा में बच्चों को पढ़ाना, हाजरी लेना अथवा स्कूल के कार्यों का सम्पादन करना ही नही है।
आज के लेख में, मैं अपने सबसे प्रिय गुरु श्री हरिशंकर जी पर लिखुंगा, जिनके कार्यों में जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों के निर्वहन को देखकर काफी प्रभावित हुआ हूँ। इनका जिम्मेवारी स्कूल कार्यों से कंही ज्यादा है।
इसके अलावा शिक्षकों पर कुछ लिखना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं के छत्र-छाया में विश्व के भविष्य के निर्माण सुनिश्चित होता है। श्री हरिशंकर जी को विद्यालय में सभी छात्रों के अलावा अन्य शिक्षक-शिक्षिकाएं भी अपना गुरु मानते हैं।
क्योंकि ये हमारे विद्यालय के सबसे वरिष्ठ शिक्षक है। इनका पहनावा आज के आधुनिक ज़माने में भी धोती-कुर्ता पहनकर ही विद्यालय आते हैं। इसी वजह से इनकी विद्यालय में अलग छवि बनी हुयी है।
1. परिचय
एक आदर्श अध्यापक को बहुआयामी योग्यता और कौशल से परिपूर्ण होना आवश्यक है। तभी वह अपने छात्रों की बेहतर शिक्षा प्रदान करके उसके उजव्वल भविष्य को साकार कर सके।
इसके अलावा प्रत्येक छात्रों के अन्दर छिपे जिज्ञासा, रचनात्मक सोच को वृद्धि कराकर उनके संपूर्ण व्यक्तित्व निर्माण करना है।
इनका कहना है कि एक टीचर्स की जिम्मेवारी ऐसे ही इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि एक छात्र के जीवन के सीखने का अधिकतम समय इनके इर्दगिर्द ही व्यतीत होता है। और इसलिए छात्र के भविष्य निर्माण में सबसे अधिक प्रभाव गुरुओं के गुणों और इनके द्वारा दिए गये संस्कारों पर ही इनका जीवन की रुपरेखा तय होता है।
2. आदर्श शिक्षक की मुख्य विशेषताएं
हमारे प्रिय अध्यापक हरिशंकर जी छात्रों को सलाह देते हैं कि, अगर आप सब भी भविष्य में अच्छा अध्यापक बनना चाहते हैं तो आपको कुछ मुख्य बातों को अपने जीवन में अपनाना होगा।
2a. धैर्यता
एक ही कक्षा में विविध बुद्धिमता वाले छात्र साथ मिलकर पढ़ाई करते हैं। सभी छात्रों के सोचने-समझने की शक्ति एक दुसरे से काफी भिन्न होते हैं।
इसलिए कई छात्रों को एक ही बार में सभी विषय नही समझ आते हैं। ऐसे छात्रों को एक ही पाठ कई बार दोहराकर गुरुओं को पढ़ाना पड़ता है। इसमें शिक्षक को बहुत धैर्यता की आवश्यकता होगी, क्योंकि कमजोर छात्रों के उनकी व्यक्तिगत स्तर पर जाकर समस्यों का हल करना होगा। छात्रों के उदंडता भी धैर्यता से ही अनुकूल व्यवहार से शांत कर पाते हैं।
2b. स्पष्ट संचार
आपके भाषा की अभिव्यक्ति और लेखन कला बेहद स्पष्ट होना चाहिए। बेहतर अभिव्यक्त कला से विद्यार्थियों और अध्यापक के मध्य आपसी संवाद रचनाशील और सकारात्मक संबंध बनता है।
इस कारण छात्रों के मध्य विश्वास बनने में जुड़ने में सहज माहौल का सृजन होता है, जहां छात्र प्रश्न पूछने और मदद मांगने में असंकोच महसूस नही करते हैं।
2c. अनुकूलन क्षमता
अनुकूलनशीलता नई स्थितियों और चुनौतियों के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता को कहते है। अगर हमें भी भविष्य में एक अच्छे टीचर बनना है तो, हमें भी हालात के बदलती जरूरतों के अनुसार ढलना होगा।
जिस प्रकार एक गुरु अपने छात्रों को सिखाने के लिए हर प्रकार से समायोजित करने की कोशिश करते हैं। अनुकूलता शिक्षकों को अपने शिक्षण में नई तरीकों को सीखने को प्रोत्साहित करते हैं, जो छात्रों के सीखने के अनुभव को बढ़ाती है।
2d. लगातार सीखना
जब आप शिक्षक का किरदार निभाओगे तो आपको हमेशा सीखते रहना होगा। क्योंकि शिक्षा का स्वरुप साल-दर-साल बदलते रहे हैं। किताबें, कहानियां, पाठ्यक्रम से लेकर पाठ्यपुस्तक में समय समय पर सुधार किया जा रहा है।
उन सुधारों और बदलावों को बच्चों तक पहुचना शिक्षक का ही दायित्व है। इसलिए आपको निरंतर नए ज्ञान से अवगत होते रहना होगा। इसके साथ ही हर साल नए नए छात्रों का नामांकन होते रहते है, और सबसे ज्ञान को अर्जित करने और समझने के तरीके विभिन्न विभिन्न होते हैं।
2e. सहानुभूति
सहानुभूति का अर्थ है, “दूसरों की भावनाओं को समझना या अपनेपन की भाव रखना।“ जबतक छात्रों के भावनाओं को अध्यापक समझ नही पायेंगे, तब तक उनकी समस्याओं का हल कर पाना अध्यापक के लिए बड़ी चुनौती होगा।
सहानुभूति रखने वाले शिक्षक, अपने छात्रों के साथ सकारात्मक तरीके से भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं, जिससे बेहतर शैक्षणिक परिणाम मिलते हैं।
2f. रचनात्मकता
रचनात्मकता का अर्थ है, “विचारों में सृजनात्मकता।“ शिक्षकों में सृजनात्मकता से कक्षा में रोचकता और जिज्ञासा बढ़ाता है। इससे छात्रों में कक्षा में उत्सुकता और ज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर बेहतर समझ बढ़ते है। रचनात्मकता से ज्ञान का दायरा भी बढ़ता है।
2g. अनुकूलन क्षमता
अनुकूलनशीलता का अर्थ है –“नई स्थितियों और चुनौतियों के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता रखना।“
एक अच्छे शिक्षक वही बन सकेगा, जो छात्रों की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वयं को छात्रों के अनुरूप बदलने में सक्षमता विकसित कर पाए। शिक्षकों का यह कौशल का सबसे अधिक उपयोग अक्षम छात्रों को पढ़ाने के दौरान होता है।
3. शिक्षकों द्वारा छात्र के प्रदर्शन का आकलन
छात्रों के बौद्धिकता स्तर को समय-समय पर आकलन करना शिक्षकों के लिए जरुरी है। इन आकलन प्रक्रियाओं द्वारा ही शिक्षकों को, छात्रों के प्रगति स्तर को नापने में मदद मिलता है।
यह मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा शिक्षकों को उन छात्रों को पहचानने में मदद करता है, जो छात्र पढ़ने-लिखने में कमजोर अथवा पिछड़े रह जाते हैं। छात्रों का मूल्यांकन कई प्रकार से किया जाता है। इन्हें कई मूल्यांकन प्रक्रिया से होकर गुजरना होता है।
जैसे कि छात्रों के मध्य आपसी प्रतियोगिता आयोजित करके, ग्रुप डिस्कशन द्वारा, रचनात्मक कार्यों, होम असाइनमेंट, क्विज, सामुहिक प्रोजेक्ट्स कार्य आदि है। इसके अलावा भी कई आउटडोर गतिविधियों द्वारा भी आकलन किया जाता है।
छात्र के प्रदर्शन का आकलन करते समय, इनको ज्ञान, कौशल, समझ और दृष्टिकोण जैसे कई कारकों पर विचार करना चाहिए। हमारे शिक्षक भी वही मूल्यांकन तरीका का चयन करते है, जो सीखने के उद्देश्यों और कक्षा के निर्धारित मानकों से मेल खाता हो।
उदाहरण के लिए, यदि मूल्यांकन का उद्देश्य महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करना है, तो शिक्षक ऐसे असाइनमेंट तैयार करेंगे जो छात्र के प्रदर्शन और ज्ञान का विश्लेषण करने में उपर्युक्त होगा।
अंत में, छात्र के योग्यता को नापने के लिए मूल्यांकन करना अनिवार्य है। क्योंकि इसी तरीके से ही छात्र के कमजोरियों को पहचानकर उनमें सुधार किया जाता है।
4. आदर्श शिक्षक की चुनौतियां
जिस पेशे से देश का भविष्य को नीव बसता हो, उसमें चुनौतियां ना हो ऐसा संभव ही नही है. एक टीचर को हर रोज कई चुनौतियों से सामना होता है। चाहे स्कूल प्रबंधन की बात हो या फिर छात्रों के प्रबंधन से जुड़ी बात हो. लेकिन तमाम बाधाओं के बावजूद, इस पेशे में जुड़े रहना बेहद ही पुरस्कृत महसूस कराता है।
- विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए स्कूल के नियमों में बदलाव
- प्रत्येक छात्र के जरुरत को समझना
- क्लासरूम को रोचक बनाये रखना
- छात्रों को शैक्षणिक कार्यों में अधिक व्यस्त रखना
- छात्रों का समय-समय पर परामर्श देना
- टीचर-पेरेंट्स मीटिंग कराना
- पेशेवर जीवन और व्यक्तिगत जीवन में तालमेल बैठाना.
इस व्यवसाय में अधिक चुनौतियों के बावजूद, कई लोग स्वयं को इस पेशा से जुड़कर खुशी अनुभव करते है। कारण है इसके पेशा की स्वरुप। इस पेशे से जुड़कर हर दिन छात्रों के जीवन में बदलाव लाने में सौभाग्यशाली आनंद मिलता है, वह किसी अन्य पेशा में नही मिलता है।
5. दोस्त के रूप में शिक्षक की भूमिका
हमारे प्रिय आदर्श शिक्षक श्री हरिशंकर जी का मानना है कि छात्रों में बेहतर नैतिक-आदर्श गुण समाहित करने के लिए, विद्यार्थियों संग मित्रवत व्यवहार करना होगा।
इनका मानना है कि एक आदर्श गुरु की भूमिका कक्षाओं में छात्रों को ज्ञान और सूचना प्रदान करने से कहीं आगे तक जाती है। इन गुरुओं को अपने छात्रों के लिए मित्र की तरह व्यवहार रखना चाहिए।
क्योंकि जब गुरु एक दोस्त की भूमिका में अपने छात्रों से व्यवहार निभाते हैं, तो कक्षा में पठन-पाठन सीखने और विकास अधिक प्रभावी और आनंददायक होता है।मित्रता से कक्षा में गुरु और शिष्य के मध्य विश्वास और आपसी रिश्ता मजबूत होता है।
यही कारण है कि छात्रों मुश्किल परिस्थितियों में फंसने पर कई बार व्यक्तिगत समस्याओं के निवारण के लिए अपने प्रिय शिक्षक की मदद लेते है। उन्हें विश्वास होता है कि, उनके गुरु के पास आवश्य बेहतर सुझाव होंगे।
मैत्रीपूर्ण व्यवहार से छात्रों को बाधाओं को दूर करने और अपने लक्ष्यों तक पहुँचने में मदद शिक्षकों के लिए आसन बन जाता हैं। क्योंकि मित्रता से छात्र स्वयं को अभिव्यक्त करने और अपने विचारों को साझा करने में सहज महसूस करते हैं।
परंतु यह भी हमें स्मरण हो कि मित्रता में छात्र अपनी सीमा ना लांघे और एक गुरु भी अपनी मर्यादाओं का पालन करें। हालांकि, एक गुरु और विद्यार्थी में दोस्ती का बेहतर संतुलन से, सीखने का ऐसा माहौल बनता हैं जो छात्रों के लिए प्रभावी और आनंददायक होता है।
6. प्रेरक के रूप में आदर्श शिक्षक की भूमिका
एक छात्र तभी अपने जीवन के उदेश्यों को हासिल कर पायेगा जब वह निरंतर अपने सीखने की प्रक्रिया में व्यस्त बने रहेगा। इनका सुझाव हैं की अगर सफलता पानी है तो कड़ी मेहनत के साथ गतिशीलता भी चाहिए।
इसलिए जब छात्रों का मन लम्बे समय तक पढाई करते-करते थक जाते हैं, तो हमारे आदरणीय गुरूजी जी हमें प्रेरक बातों से हमें पढाई करने के लिए उत्साहित करते है।
इससे पता चलता है कि गुरुओं की भूमिका ना सिर्फ बच्चों को अध्ययन कराना बल्कि समय-समय पर प्रेरित करना भी है।हम छात्रों को महापुरुषों के जीवनी, प्रेरणादायक कहानियों एवं संघर्षशील लोगों के कहानिया सुनाकर हमें प्रेरित करते हैं।
इससे हम सभी छात्रों का मनोबल बढ़ता है। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, जैसे महान क्रांतिकारियों के जीवन के संघर्षों की कहानियां और उनके प्रेरक प्रसंगों को सुनकार हम सभी छात्रों का उत्साह बनाए रखते हैं।
7. शिक्षक से समाज को लाभ
आज हमारे देश आजाद हुए 70 साल से अधिक समय गुज़र चुके हैं। और हमने आधुनिकता के परकाष्ठा को हासिल किया है परन्तु गांवों में आज भी छुआछुत, अंधविश्वास, रूढ़िवादी विचारधाराएँ आज भी व्याप्त है।
इन गलत अवधारनाओं से गाँवों को उन्मुक्त कराने में शिक्षा ही कारगर है, जो स्कूल से उपलब्ध है।छात्रों के लिए गुरु ही रोल मॉडल और मार्गदर्शक की भांति है। इसलिए इन्हें समाज में बहुत ही सम्मानीय स्थान दिया गया है।
गाँव के साक्षरता का स्तर बढ़ाने में इन्हीं के मार्गदर्शनऔर नेतृत्व पर निर्भर रहता है। छात्र कैसे पढाई करेंगे ? इनका व्यवहार कैसा होगा? भविष्य में देशहित में किस प्रकार भागीदारी निभाएंगे? समाज के अन्य वर्गों के प्रति विचारधारा क्या होगा ? जैसी तमाम सभी चीजें इन्हीं के शिक्षा-दीक्षा पर निर्भर है।
बच्चे, बुजुर्ग,नौजवानों और महिलाओं में शिक्षा की ज्योति जलाने का कार्य भी शिक्षक का ही है। इनसे ही समाज का वास्तविक सरोकार समाहित है।
8. अंतिम पंक्ति
अंत में, यही कहूँगा कि, एक छात्र के शैक्षणिक जीवन में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होता है। इनका किरदार बहुआयामी है जिसमें कभी मित्र, तो कभी परिजन, तो कभी सलाहकार के तौर पर विद्यार्थियों का जीवन सवांरते है।
इनके प्रेरणा और सलाह को अपनाकर हम विद्यार्थी अपने जीवन में लक्षित सफलता को जल्दी हासिल कर सकते हैं। ये हमें विभिन्न तरीकों से, स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने, और नियमित प्रतिक्रिया प्रदान करके, स्वयं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते है।
इसलिए हम छात्रों का भी दायित्व बनता है कि, नम्र स्वभाव से शिक्षकों द्वारा प्रदान किये जाने वाले ज्ञान-आदर्शों को जीवन में अपनाएं और आवश्यक मार्गदर्शन से जीवन के उच्च शिखर तक पहुचें।
क्योंकि हमारे गुरूजी का कहना है कि अगर गुरुजनों के निर्देशित राहों पर चलोगे तो, सभी छात्रों को अपनी पूरी क्षमताओं का अनुभव होता है।
इस लेख के लिए अपने प्रिय एवं आदर्श शिक्षक श्री हरिशंकर जी का कोटि-कोटि धन्यवाद करना चाहूँगा, क्योंकि इनके आशीर्वाद और सानिध्य ने ही मुझे आदर्श शिक्षक के कार्यों और दायित्वों को करीब से जानने और समझने का अनुभव प्राप्त हुआ।