माताजी को पत्र लिखने से बच्चों के साथ रिश्तों में मधुरता बढ़ता है। इन पत्रों से आपसी प्रेम भावना गहरी होती हैं। पत्र महज कागज का टुकड़ा मात्र नही जो सिर्फ सन्देश और जानकारियां समेटे रखता है।
बल्कि यह दो व्यक्तियों के मनोभाव को गहराई से जोड़ने का काम करता है। इस लेख में माँ को विभिन्न अवसरों में पत्र लिखने के तरीके मिलेंगे।
जैसे कक्षा में प्रथम आने पर, छात्रावासीय जीवन पर अपने अनुभवों और दिनचर्या बताना, अपने गलत आदतों पर पश्चाताप पत्र, या छोटे भाई के प्रथम आने की बधाई पत्र आदि मिलेंगे।
1. कक्षा में प्रथम आने पर माताजी को पत्र
कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना विद्यार्थियों को सपना होता है। यह एक बेहद ही खुशी का समय होता है, जब छात्र प्रथम स्थान प्राप्त करता है। अपने माताजी को पत्र लिखकर कक्षा में प्रथम आने की खुशखबरी देना चाहते है तो हमने आपके लिए बहुत अच्छी तरह से पत्र प्रारूप प्रस्तुत किया है।

मकान संख्या- 28
उदयपुर नगर, घाटशिला
रांची, झारखण्ड
दिनांक –
नमस्ते माताजी,
सादर प्रणाम,
घर में आप सब सकुशल मंगल तो है ना…! क्या मेरा प्यारा डौगी मेरे बगैर रह लेता है ? मुझे यह कहते हुए अति गौरवान्वित महसूस हो रहा कि, आप सभी के आशीर्वाद से इस साल भी कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुयी हूँ। सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं ने मुझे उज्जवल भविष्य के लिए ढेरों बधाईयाँ दिया। मैंने पूरी कक्षा में मिठाईयां बांटे। सभी सहपाठियों ने बधाइयाँ दिया और बहुत प्रसंशा किये। प्रधानाचार्य ने सभी श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को बाल दिवस पर, सभा आयोजित करके पुरस्कृत देने की घोषणा किया।
सूची में मेरा नाम भी शामिल है। साथ ही माता-पिता को भी आमंत्रण दिया है। आप और पिताजी जरुर आएगा। साथ में छोटी बहन और डौगी को भी लेते आएगा। इनसे मिलने मैं काफी उत्साहित हूँ। कई दिनों से उनसे मिला नही हूँ। माताजी, आपके द्वारा दिए गए हर छोटी-मोटी सेहत, प्रेरणादायक, और खान-पान से जुड़े सलाह से ही यह उपाधि पायी हूँ। दादा-दादी को मेरा प्रणाम और छोटों को ढेर सारा प्यार। छोटी बहन को ये खुशखबरी देना नही भूलियेगा।
आपका आज्ञाकारी पुत्री
महाश्वेता
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2. माँ को छात्रावासीय जीवन पर पत्र।
माँ से बढ़कर कोई परवरिश नही कर सकता। माताजी के बराबरी देखभाल और दायित्व कोई अन्य निभा नही सकता। इसलिए माताजी को अपने पुत्र पुत्रियों के छात्रावासीय जीवन पर बहुत रूचि होती है।
अतः आपका भी दायित्व बनता है कि, माताजी को पत्र लिखकर छात्रावासीय जीवन के बारे में बताएं। वंहा के रहन-सहन एवं सुख सुविधाओं पर जानकारी दीजिए। क्योंकि माताजी को इन विषयों पर काफी उत्सुकता होती है।
छात्रावासीय जीवन पर लिखे गये पत्रों बड़े होते हैं। क्योंकि छात्रावासीय जीवन पर बहुत कुछ होता है कहने के लिए।

वार्ड नंबर-114
किसनगढ़, लालनगर
पलामू, झारखण्ड
दिनांक –
आदरणीय माता जी,
सप्रेम नमस्कार,
छात्रावास जीवन के तीन महीने पुरे हुए। छात्रावासीय जीवन, घरेलु जीवन शैली से भिन्न है। यंहा रूटीन जिंदगी है। रूटीन जिंदगी भले ही बंधन लगे, परंतु रूटीन के बिना अनुशासित जीवन असंभव है। और अनुशासन बिना सफलता नही मिलेगा।
- सभी छात्रों को पांच बजे तक योग-कसरत के लिए मैदान पहुंचना होता है। उसके बाद छात्र-छात्राएं तैयार होकर सभी सात बजे स्कूल प्रांगन में प्रार्थना करते है।
- इसके बाद कक्षाएं शुरू होते है, जंहा मुख्य विषयों के अलावा संगीत, कंप्यूटर, खेलकूद, चित्रांकन, जैसे विषयों भी पढ़ाया जाता है। एक पुस्तकालय भी है।
- दोपहर दो बजे स्कूल छुट्टी के बाद छात्र लंच करते है। उसके बाद छात्र आराम करते है। कमजोर छात्रों के लिए अलग कक्षाएं चलता है। रविवार को सफाई कार्य होता है।
- हमें किताब-कॉपी, स्कूलड्रेस, जूता-मौजा जैसे जरुरी वस्तुएं मुफ्त मिले है।
- शाम को सभी मिलकर खेलते है। रात्रि भोजन आठ बजे खाना खाकर, रात्रि दस बजे तक पढ़ाई करके सभी सो जाते हैं।
- पर्व त्योहार भी मनाया जाता है। अनजान लोगों से सुरक्षा के लिए गार्ड तैनात है। बीमार छात्रों के देखभाल के लिए नर्स है।
इसी तरह हमारा छात्रावासीय जीवन चलता है। शिक्षक-छात्रों के मध्य परिवार जैसे रिश्ता होने से अकेलापन महसूस नही होता। इसलिए छात्रावासीय जीवन एक परिवार है। हाँ, कभी कभी घर की याद बहुत आती है। पर जल्द ही छुट्टियाँ होंगे।
आपका पुत्र
आशीष
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3. अपनी गलती पर क्षमा माँगते हुए माँ को पत्र।
किशोरावस्था की उम्र में हर युवावर्ग को अपना निर्णय ही सही लगता है। जबकि बाकी लोगों की सलाह-मशविरा बेकार। किशोरों को पता नही होता कि, कोई भी निर्णय जज्बाती होकर नही लेना चाहिए।
इसीकारण इनको लगता है कि, फॅमिली हमें नही समझ पा रहे हैं। जबकि बड़े बुजुर्गों के पास जिंदगी के बेहतरीन अनुभवों से होकर गुजरते हैं।

7 बी टाउन,
अंबाला रोड, सिरसा
पानीपत,हरियाणा
दिनांक –
प्रिय माताजी,
सादर प्रणाम
भले ही मैं 18 की हुई हूँ, पर आज मुझे एहसास हुआ कि, परिपक्वता आने में समय लगता है। अपनी गलती से इनता शर्मिंदा हूँ कि, सामने आकर माफ़ी मांगने में झिझक हो रही। इसलिए अपनी गलती पर क्षमा माँगते हुए पत्र लिख रही हूँ। और मुझे मालुम है कि आपने इस नासमझ लाड़ली को माफ़ भी कर दिए हो पर फिर भी आपसे बातें करने का हिम्मत नही हो रही।
आपके हजार मना करने और समझाने के वाबजूद, जो कुछ भी उस दिन हुआ उसका पूरा जिम्मेवार मैं ही हूँ। मैंने आपका कहना नही माना, जिसका भुक्तभोगी परिवार को होना पड़ा। मैंने अगर थोड़ा भी शांत मन से करता तो ये नौबत ही नही आती। आज मुझे वाकई समझ आया कि, गुस्सा और जिद्दीपन से लिया गया निर्णय गलत होता है। कोई भी बड़े निर्णय भावनाओं में नही लेना चाहिए। जब मेरा गुस्सा शांत हुआ, तो वाकई काफी पछतावा हुआ। पर मुझमें साहस नही, कि मैं आपके सामने आकर माफ़ी मांग सकूँ। इसलिए मैं यह पत्र लिखकर टेबल पर छोड़ रही हूँ। अबकी बार दोबारा यह गलती नही दोहराऊँगी।
आपकी नासमझ दुलारी
नितुरा
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4. भाई के परीक्षा में प्रथम आने पर माताजी को पत्र।
मकान संख्या – 55A
जिला रोड-2, भिलाई
मौऊ, उत्तरप्रदेश
दिनांक –
आदरणीय माताजी,
आपको, पिताजी और सभी गुरुजनों का सबसे पहले प्रणाम। आप और घर के सभी सदस्य सकुशल तो है ना, और नही भी है तो आज के खबर से हर किसी का तबियत ठीक हो जायेगी। आज यह पत्र लिखते हुए बहुत खुशी हो रहा कि, आपका छोटा बेटा और मेरा प्रिय भाई “राजकुमार” ने ग्यारहवीं कक्षा अच्छे अंकों बहुत मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण किया है।
उसने काफी मेहनत, लगन और परिश्रम से हासिल किया। आपके और पिताजी के आशीर्वाद बिना यह संभव ही नही था। चाचा-चाचीजी, नाना-नानीजी और बहुत भाई बंधुओं ने फ़ोन कर बधाइयाँ और ढेरों आशीर्वाद दिया। उसने स्कूल में टॉप पांच में अपना स्थान बनाया। जिस दिन रिजल्ट निकला उस दिन हमनें पार्टी मनाया।
जब उसने परिणाम देखा तो विश्वास नही हुआ कि परिक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। जिस विषय में कम अंक मिलने का डर था, उसी में सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा है। हम दोनों जल्द ही छुट्टियों में घर आने वाले हैं। घर आकर ढेर सारी बातें करना है।
आपका प्यारा पुत्री
पुनीता
सफलता प्राप्त करने में रिजेक्शन के महत्व
हमने आपको कई प्रकार के माताजी को पत्र लिखने के प्रारूप दिया है। अगर कोई अन्य विषयों पर पत्र चाहते है, या फिर इस लेख के बारे प्रतिक्रिया देना चाहते है, तो निश्चित ही कमेंट करना ना भूले।