दुनिया के मनुष्य से लेकर हर जीव में भावनाएं है। भावनाएं अच्छे हो तो दिन अच्छा गुजरता है। सभी अपने भावनाओं को बोलकर, रोकर, हँसकर, छुकर, गुस्साकर, जैसे कई गतिविधियों से सामने वाले पर जाहिर करते हैं।
उन्ही भावनाओं का असर सामने वाले पर होता है। हँसना, मुस्कुराने पर तो अच्छा महसूस होता है। लेकिन कोई हमें गुस्सा, नाराजगी जाहिर कर दे, तो उसका हमारे ऊपर गलत प्रभाव पड़ता है।
खासकर तब ज्यादा होता है, जब हमारे भावनाओं पर काबू नही होता। भावुक हर कोई होता है, और इसमें कोई खराबी नही। लेकिन अपने ही भावनाओं पर स्वयं का काबू नही होना गलत है।
1. परिचय
रितिका मल्टीनेशनल कंपनी में टीम लीडर है। एक दिन किसी काम के लापरवाही के वजह से उसके सीनियर मैनेजर ने डांट लगा दिया। बात कुछ देर में ही सामान्य हुआ। लेकिन रितिका को मेनेजर का डांट मन तक चोट कर गया।
रितिका का कहना था कि, इतनी इमानदारी और मेहनत से काम करने के वाबजूद कितना सुनना पड़ता है। इसी बात को दिल में लेकर बैठ गयी। परिस्थितियां इतना बिगड़ा कि, इससे रितिका के दैनिक कामकाज भी बिगड़ने लगा। और तबियत भी ख़राब होने लगा।
क्या आप भी इसी प्रकार के दौर से गुजरे हैं, जब किसी ग़लतफ़हमी से रिश्तों में कढ़वाहट आ जाये और आप असामान्य हो जाते है ? ऐसा है तो जल्दी सतर्क हो जाएं। क्योंकि भावनाएं आप पर हावी हो जाने से, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
2. भावनाओं की समझ
संयोग से, प्रत्येक मानव खुशी, दुख और पीड़ा सहित भावनाओं का अनुभव करता है। हालांकि, जो लोग उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाते, वे ही अक्सर असहज महसूस करते हैं। इस वजह से, यह महत्वपूर्ण है कि अपने भावनाओं को स्वयं में हावी होने के बजाय काबू करना सीखें।
यह एक सरल प्रक्रिया है जिसे केवल अपनी सोच और दुनिया के प्रति दृष्टिकोण को बदलकर किया जा सकता है। तब आप अनुभव करेंगे कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सहजता से सभी मुश्किलें आसानी से हल कर पायेंगे।
आज मैं आपसे कुछ तरीके आजमाने कहूंगा, जिससे आप अपने भावनाओं को नियंत्रित कर सके।

3. अपनी भावनाओं को कैसे समझे
भावनाएँ मनुष्य होने का एहसास कराता हैं, क्योंकि भावनाएँ ही हमारे निर्णयों और दुसरे से बातचीत करने के तरीकों को आकार देता हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इनको पहचानना और समझना आवश्यक है।
भावनाओं में बारीकियां होती हैं, इसलिए इन्हें पहचानना हमेशा संभव नहीं है। इसके लिए शारीरिक संवेदनाओं पर ध्यान देना आवश्यक है, कि आप कैसा महसूस करते हैं।
चिंताएं शरीर में विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकते है, जिसमें छाती में जकड़न, तेज़ नाड़ी की दर और पसीने से तर हाथ जैसे कई क्रियाएं शामिल हैं। उदासी आपको बोझिल और उदासीन महसूस करा सकता है।
बढ़ी हुई जीवन शक्ति और मांसपेशियों की जकड़न की भावना क्रोध की सामान्य प्रतिक्रिया है। इन अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करने से आपको भावना को नाम देने में मदद मिल सकती है।
अपनी भावनाओं को लेबल करना, उन्हें पहचानने का एक और तरीका है। जैसा कि, “मैं अभी चिंतित महसूस कर रहा हूँ,” या “मैं इस बारे में दुखी महसूस कर रहा हूँ।” बस अपनी भावनाओं को नाम देने से आपको उन पर अधिक नियंत्रण महसूस करने और आप पर उनके प्रभाव को समझने में मदद मिल सकती है।
4. भावनाओं को अपने वश में करने के तरीके
4a. गलतियों को स्वीकारना जरुरी
कोई भी व्यक्ति पूर्ण नही है। हर कोई गलती करता है, लेकिन जो गलतियों से सीखकर जिंदगी सुधरता, वही आगे बढ़ता है। वही जिंदगी के जंग जीतते हुए आगे बढ़ता है। कोशिश कीजिए कि, एक ही गलती दोहराया नही।
हाँ, अगर आपका इरादा किसी को नुकसान नही पहुंचाना है, तो भरोसा रखिये कि, आपसे कभी इतनी बड़ी गलती भी नही होगा कि जिंदगीभर पछतावा हो।
4b. हमेशा आगे बढ़ना
गुजरे ज़माने की यादों से वर्तमान नही बदलता। लेकिन, अतीत की गलतियों से सीख लेकर, भविष्य को ध्यान रखकर वर्तमान को बेहतर बनाना ही जिंदगी है। अतीत से बस इतना ही सीखना है। आपका अतीत भी जरुर खुबसूरत बनेगा। लेकिन,
“”अतीत को बेहतर बनाने के लिए वर्तमान को मुस्कुराते हुए गुजरना होगा।””
तभी ना, बीते पल को याद करेंगे तो वर्तमान में भी अच्छा एहसास दिलाएगा। इसलिए इसी पल को बेहतर बनाइए। और अगर यह लाइन आपको दिल को छु ले, तो कमेंट में कुछ ना कुछ Appreciation जरूर कीजियेगा।
4c. सबको खुश रखना आपका जिम्मेदारी नही
अक्सर हम सोचते हैं कि, सब कोई हमसे खुश रहे। आपसे हर कोई खुश तभी रहेगा, जब सबके उम्मीदों में खरा उतरेंगे। जो की मुमकिन ही नही।
और एक बात यह भी है कि जब सबके उम्मीदों पर खरे उतरेंगे, तब कोई न कोई मतलब से इस्तेमाल करने वाला जरुर मिलेंगे। फिर आप सोचेंगे, मुझे उससे इस प्रकार का व्यवहार का उम्मीद नही था।
“”एक इंसान से इतना ही उम्मीद करना चाहिए, कि जब वो उम्मीद टूट जाए, तो खुद न टूटें।””
जो आपको लगे कि कोई थोड़ा भी मतलब से याद कर रहा, उसे हमेशा के लिए बाय बाय कीजिए। ये लोग दुश्मन से भी तकलीफदेह हैं। इसलिए सबके हाँ पर हाँ मिलाने बिलकुल भी जरुरी नही।
4d. खुद से पहला प्यार
जरुरी नही कि हर इंसान आपके महत्व समझे। किसी को सम्मान करने के लिए मजबूर नही कर सकते, आप सिर्फ अपने व्यवहार को ही नियंत्रित कर सकते हैं। इसलिए सामने वाले से सम्मान का उम्मीद से, बेहतर अपने व्यवहार को सुधारें।
वरना, उस इंसान से ही दुरी बना लीजिए। उन रिश्तों पर ध्यान दें, जंहा आपको स्वीकारतें है साथ ही आपके वास्तविकता का आईना दिखाएं। चापलूसी और मतलबी करने वाले तो हमेशा तारीफ करते मिलेंगे।

4e. सीधे वार्ता करें
रिश्तों के खटास, गलतफहमियों को सुधारने के लिए सीधे फ़ोन पर या आमने सामने बात कीजिए। इससे आप भावनात्मक तरीके से जुड़ते हैं। टेक्स्ट मैसेज भावनात्मक रूप से ज्यादा असरदार नही होतें है। और सामने व्यक्ति किस तरीके से सोचता है, यह भी असमंजस स्थिति बना देता है। इसीलिए खुल कर बातें कीजिए।
4f. भावनाओं को डायरी में लिखें
जरुरी नही कि हर शख्स से अपना भावनाएं व्यक्त कर पाएं। हर इंसान पर भरोसा भी नही कर सकते, कि आपके व्यथा को आप दोनों तक ही सीमित रखे। हो सकता है कि किसी अन्य के साथ शेयर कर मजाक बनाएं।
जिससे आपके भावनाओं का सिर्फ मजाक ही बनता है। इस वजह से आप आहत होंगे। वर्ना ऐसे दोस्त को ही अपनी भावनाएं बताएं, जो आपके ख़ामोशी पढ़ सकें। और ना हो तो बेहतर होगा, कि एक पर्सनल डायरी खरीदें।
उसमें अपने दिनचर्या के महत्वपूर्ण घटनाओं को लिखें। इससे मन की बातें जाहिर होगा, जो इससे राहत महसूस करायेगा। नही तो एक कागज में लिखकर फेंक दीजिए। यह मानसिक तनाव कम करने में कारगर होगा। इससे जिंदगी के प्रति नया नजरिया विकसित होगा।
4g. आगे बढ़ते रहना जिंदगी
नए लोगों से मिलनाजुलना बनाये रखे। जितने ज्यादा नए लोगों से मिलेंगे, उतना ज्यादा विचारों का आदान-प्रदान होगा। नए विचारधारा पनपेगा। हम जो कॉलेजों में 4 साल बिताते है, इससे हमारे सोचने-समझने के तौर तरीकों में बदलाव आता है।
जितना ज्यादा समझ विकसित होगा, उतना ही भावनाएं काबू रहेंगे। इसलिए नए लोगों से मिलने पर हिचकिचाए नही।
4h. साहित्यिक लेख-जीवनी पढ़िए
अक्सर हम सभी साहित्यिक लेख से दूर भागते हैं, समाचार पत्रों में कई बार जिंदगी से जुड़े कई लेखाकारों के विचार छपते है। उन चीजों को पढ़ेंगे तो बहुत सारे हमारे सवालों के जवाब मिलते हैं।
लेकिन उन लेखों को हम दरकिनार कर खेल, बॉलीवुड, जैसे समाचारों पर ध्यान देते हैं। जिससे हमारे जिंदगी का कोई वास्ता ही नही होता। साथ ही साहित्यिक पत्रिकाओं, महान व्यक्तित्व लोगों का जीवनी से भी बहुत सीखने मिलेंगे।
5. रिश्तों में भावनाओं को नियंत्रित कैसे करें
कोई भी रिश्ते भावनाओं के बिना अधूरे होते हैं। इसलिए भावनाओं का तरीके से व्यक्त करना ही, रिश्तों के बुनियाद को बेहतर बनाता है।
ठीक इसके उलट, अगर अपनी भावनाएं इजहार करते वक़्त अपरिपक्व अनुभव करवाएं तो निश्चय ही रिश्तों में आपसी मनमुटाव भी पैदा होंगे।
यही कारण है कि, हमें आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए व्यवहार कुशलता, एक दुसरे के सीमाएँ समझना, नेगेटिव मेंटालिटी और सहानुभूति जैसे कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए।
5a. बातचीत करने की कौशलता
अच्छे रिश्तों को बातचीत कुशलता से ही पहचाना जा सकता है। अपने पार्टनर के रवैये पर ध्यान देते हुए अपनी भावनाओं, विचारों और चाहतों को सँभालते हुए इजहार करना चाहिए।
इसके लिए पार्टनर के भावनाओं को धीरज से सुनना, समझना होगा। यदि आप अपने साथी के भावनाओं को जाहिर करने में रुकावट पैदा करते हैं तो यह अधिक बहस का कारण भी बन सकता है।
जब पार्टनर के साथ मनमुटाव हो जाए, तो अपने साथी को दोषी ठहराने के बजाय, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए “मैं” संबोधन का उपयोग करें।
उदाहरण के लिए, “आप मेरी बात कभी नहीं सुनते हैं” कहने के बजाय, ऐसे कहें कि, “जब मैं बोल रहा होता हूं तो मुझे आप अनसुना व्यवहार करते हो।”
यह रणनीति आपके जीवनसाथी को आपकी भावनाओं की जिम्मेदारी लेने में सहायता करते हुए आपकी बातों को सुनने और समझने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
5b. एक-दुसरे के सीमाओं को समझना
कोई इंसान कितना ही बेहतर क्यों ना हो, हर इंसान के व्यवहार में कुछ अंश ऐसे होते हैं, जिसे सामने वाला व्यक्ति किसी भी हालातों में पसंद नही करेंगे।
इसलिए रिश्तों में एक-दुसरे के सीमाओं को पहचानना आवश्यक है, कि किस व्यवहार से सामनेवाला अधिक दुखी हो सकता है, या किन बातों से खुशी अनुभव कर सकता है। इससे आत्म-सम्मान को भी ठेस नही लगेगा ।
5c. रिश्तों में खामियों को पहचानना
किसी भी रिश्ते में छोटेमोटे मनमुटाव हमेशा होते रहेंगे, जो किसी के भी भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। इन प्रवृत्तियों को जल्द से जल्द पहचानकर, सभी गलतफहमीयों को दूर करना चाहिए।
इसके लिए, अपने जीवनसाथी के साथ अपने संबंधों में दिखाई देने वाले नकारात्मक पैटर्न को समझकर समाधान खोजना चाहिए। यदि इन खामियों को दूर करने के लिए अगर किसी परामर्शदाता के मदद की जरुरत हो तो, जरुर सहायता लेने पर विचार करें।
5d. सहानुभूति और समझदारी बढ़ाना
आपसी रिश्तों में कम टकराव चाहते हैं तो, आपसी समझ और सहानुभूति का होना जरुरी है। इसे अधिक बेहतर तरीके से समझने के लिए, हमें दूसरों के परिस्थिति में खुद को रखकर उनकी भावनाओं और पक्षों को जानने की कोशिश होनी चाहिए।
इससे आपसी रिश्तों के साझेदारी से आपसी सम्मान और विश्वास को बढ़ावा मिलता है। उनकी भावनाओं के प्रति पॉजिटिव चिंतन करें और उन्हें स्वीकारें। उनकी भावनाओं को कम महत्व देने या अस्वीकार करने से बचें क्योंकि ऐसा करने से परेशानियाँ अधिक बढ़ सकता है।
परन्तु, एक बात ध्यान रखें कि इन क्षमताओं को विकसित करने में समय और मेहनत लगती है, लेकिन ये हर सफल रिश्ते के लिए आवश्यक हैं।
6. अंत में
हमने जितना भी बिन्दुओं पर चर्चा किया, उसका निचोड़ यही बनता है कि, हम अपनी भावनाओं को सकारात्मकता, विचारों के परिपक्वता, से नियंत्रित और काबू किया जाता है। इससे हमारा समझ का दायरा बढ़ता है।
आप वयस्कों और बुजुर्गों को देखेंगे कि वे किसी भी गंभीर मुद्दों, परिस्थिति या समस्याओं को काफी सरलता और शांतिप्रिय तरीके से हल करते है। क्योंकि उनका ज्ञान, तजुर्बा और विचार समय के साथ ज्यादा परिपक्व होते हैं। भावनात्मक स्थिरता से ही सुदृढ़ व्यक्तित्व निर्मित होता है।